अमर उजाला नेटवर्क, चंडीगढ़
Updated Sat, 21 Nov 2020 02:04 AM IST
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट
– फोटो : अमर उजाला
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एक 21 वर्षीय युवक के खिलाफ लुधियाना के खन्ना सिटी-2 थाने में आईपीसी की धारा 363 (अपहरण) और 366ए (नाबालिग लड़की को कब्जे में रखने) के तहत केस दर्ज है। उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अग्रिम जमानत के लिए अनुरोध किया। याचिका पर सुनवाई के दौरान पंजाब सरकार के वकील ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए दलील दी कि लड़की नाबालिग है। उसके माता-पिता ने प्राथमिकी दर्ज कराई थी कि उसके और लड़के के पिता आपस में सगे भाई हैं।
वहीं, युवक के वकील ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता ने लड़की के साथ मिलकर एक याचिका दाखिल की थी। इसमें दोनों ने जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा की गुहार लगाई थी। मौजूदा सुनवाई के दौरान ही इस याचिका की फाइल कोर्ट में तलब की गई थी। इस याचिका में कहा गया था कि लड़की की उम्र 17 साल है और याचिकाकर्ता ने याचिका में दलील दी थी कि दोनों सहमति संबंध में हैं।
याचिका में यह भी कहा गया था कि लड़की की जन्म तारीख अगस्त, 2003 है और 3 सितंबर, 2020 को जब याचिका दायर की गई, तब लड़की की उम्र 17 साल 14 दिन थी। इसमें लड़की ने अपने माता-पिता द्वारा दोनों को परेशान किए जाने की आशंका जताई थी। लड़की की ओर से यह भी कहा गया कि उसके माता-पिता केवल बेटों को प्यार करते हैं और उसे पूरी तरह अनदेखा किया गया है। इसलिए उसने अपने मित्र के साथ रहने का फैसला लिया है।
अदालत ने इस याचिका का 7 सितंबर को राज्य को यह निर्देश देते हुए निपटारा कर दिया था कि यदि युवक और लड़की को किसी तरह के खतरे की आशंका है तो सुरक्षा प्रदान की जाए। हालांकि न्यायाधीश ने स्पष्ट कर दिया था कि यह आदेश याचिकाकर्ताओं को कानून के किसी तरह के उल्लंघन की स्थिति में कानूनी कार्रवाई से नहीं बचाएगा।
जस्टिस अरविंद सिंह सांगवान ने मौजूदा याचिका पर सुनवाई के बाद कहा, मुझे लगता है कि मौजूदा याचिका में भी याचिकाकर्ता ने इस तथ्य के बारे में खुलासा नहीं किया है कि वह लड़की का सगा चचेरा भाई है। इस याचिका में कहा गया है कि जब लड़की 18 वर्ष की हो जाएगी तो वे विवाह करेंगे। लेकिन तब भी यह गैरकानूनी होगा।
अगली सुनवाई अगले साल जनवरी में
युवक की जमानत याचिका का विरोध करते हुए राज्य सरकार के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता ने इस समय चचेरे भाई-बहन होने की बात छिपाई है। वे दोनों हिंदू विवाह अधिनियम के तहत एक-दूसरे से विवाह नहीं कर सकते। इस कारण सहमति संबंध का भी कोई अर्थ नहीं रह जाता। इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने जवाब दाखिल करने के लिए समय दिए जाने की मांग की। अदालत ने मामले की सुनवाई अगले साल जनवरी तक स्थगित कर दी।