प्रतीकात्मक तस्वीर
– फोटो : अमर उजाला
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सार
- मध्यप्रदेश के बाद अब बिहार के जरिए दिया संदेश।
- अगले महीने सभी राज्यों की स्थिति की होगी समीक्षा।
विस्तार
दरअसल, इसी साल जनवरी में दिल्ली के नतीजे आने के बाद पार्टी में शीर्ष स्तर पर राज्यों की स्थिति को लेकर गंभीर मंथन हुआ था। लोकसभा चुनावों के बाद चार राज्यों महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा और दिल्ली में विधानसभा चुनावों के दौरान पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था। इन राज्यों में पार्टी को स्थानीय चेहरे के खिलाफ नाराजगी का नुकसान झेलना पड़ा। तभी राज्यवार स्थिति की समीक्षा करते हुए जरूरी बदलाव करने पर सहमति बनी थी, लेकिन इसी बीच कोरोना महामारी का कहर चालू हो जाने से इस रणनीति को अमलीजामा पहनाने में दरी हुई।
मध्यप्रदेश में आजमाया गया फॉर्मूला
बदलाव के फॉर्मूले को सबसे पहले जुलाई महीने में शिवराज मंत्रिमंडल के विस्तार के दौरान आजमाया गया। वहां ज्योतिरादित्य समर्थकों को मंत्री बनाना पार्टी की मजबूरी थी। लेकिन इसके इतर पार्टी ने नया नेतृत्व तैयार करने की दिशा में मजबूती से कदम आगे बढ़ाया। गौरशंकर बिसेन, पारस जैन, राजेंद्र शुक्ला, संजय पाठक, जालम सिंह पटेल जैसे कई दिग्गज मंत्री बनने में नाकाम रहे। पार्टी ने नौ नए चेहरों को जगह दी।
बिहार में भी दिया संदेश
बिहार में पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी, डॉ. प्रेम कुमार, नंदकिशोर यादव पार्टी की पहली पंक्ति के नेता ही नहीं बल्कि भाजपाई राजनीति का चेहरा भी माने जाते थे। लेकिन पार्टी ने चुनाव के बाद सरकार गठन के दौरान इन तीनों ही नेताओं से किनारा कर लिया। जिस वैश्य बिरादरी की कलवार उपजाति के ताराकिशोर प्रसाद को उपमुख्यमंत्री बनाया, जबकि वह पहले कभी मंत्री भी नहीं रहे थे। इसके अलावा पार्टी ने अलग-अलग बिरादरी के नए चेहरों को जगह दी।
दिसंबर में सभी राज्यों की समीक्षा
पार्टी सूत्रों ने बताया कि अब अगले महीने उत्तर प्रदेश को छोड़ कर अन्य सभी राज्यों की समीक्षा होगी। इनमें हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा सहित उन राज्यों को भी शामिल किया जाएगा, जहां पार्टी की सरकार है। सूत्रों के मुताबिक, अपनी सत्ता वाले राज्यों में सरकार और संगठन की और जहां पार्टी विपक्ष में है, वहां संगठन की व्यापक समीक्षा कर जरूरी बदलाव किए जाएंगे। फिलहाल पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में बदलाव नहीं होगा, क्योंकि इन राज्यों में पार्टी पहले ही चुनावी मूड में आ चुकी है।