हिमांशु मिश्र, नई दिल्ली
Updated Sat, 21 Nov 2020 06:01 AM IST
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इन्हीं मुद्दों के इर्द गिर्द होगी विधानसभा चुनाव की जंग
एनपीआर पर काम इस साल 1 अप्रैल से 30 सितंबर के बीच होना था, जो कोरोना के कारण टाल दिया गया था। अब एनपीआर से जुड़े सवालों को करीब-करीब अंतिम रूप दे दिया जा चुका है। सूत्रों का कहना है कि एनपीआर का सिलसिला 15 दिसंबर के बाद कभी भी शुरू किया जा सकता है। बंगाल में मुस्लिम मतदाताओं की आबादी करीब 28 फीसदी है।
इसी वोट बैंक को देखते हुए ममता इन मुद्दों पर केंद्र पर हमलावर हैं। साल की शुरुआत में जिन 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने एनपीआर का विरोध किया था, उसमें बंगाल भी था। राज्य में सत्तारूढ़ टीएमसी अल्पसंख्यक बिरादरी को साधने के लिए एनपीआर, एनआरसी और सीएए का तीखा विरोध कर रही है। जबकि भाजपा को इस विरोध के कारण समानांतर ध्रुवीकरण की उम्मीद है।
यह है भाजपा की योजना
भाजपा विधानसभा चुनाव के दौरान एनपीआर कराने और इसे एनआरसी से जोड़ने की बात करेगी। राज्य में बांग्लादेशी घुसपैठ एक बड़ी समस्या है और भाजपा लगातार इसे मुद्दा बनाती रही है। ऐसे में उसके रणनीतिकारों को लगता है कि एनपीआर, एनआरसी और सीएए जैसे मुद्दों पर आक्रामक रुख के कारण उसे सियासी लाभ मिलेगा। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बंगाल में 18 सीटें जीती थी। इस जीत में हिंदुत्व की राजनीति की बड़ी भूमिका थी।
ओवैसी भी ठोकेंगे ताल
बिहार में पांच सीटें जीतकर उत्साहित ओवैसी की एआईएमआईएम ने बंगाल में भी चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा की है। बिहार के मुस्लिम बहुल इलाकों में मिली जीत का बड़ा कारण सीएए, एनआरसी, एनपीआर के खिलाफ असदुद्दीन ओवैसी का बेहद आक्रामक रुख रहा है।
ओवैसी ने एनपीआर के खिलाफ बड़ा अभियान चलाने की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि एनपीआर एनआरसी की ओर बढ़ने वाला पहला कदम है। मोदी सरकार एनपीआर को एनआरसी से जोड़ने की बात कर रही है। यह गरीबों और अल्पसंख्यकों को संदिग्ध नागरिक घोषित करने की साजिश है।